परमपिता परमात्मा का संपूर्ण परिचय – ज्ञान और विज्ञान
ईश्वर को परमात्मा कहा जाता है, या अधिक सटीकता से कहा जाए कि परमात्मा को ही भगवान, निर्माता सर्वशक्तिमान के रूप में जाना जाता है l इसका अर्थ है कि वह सभी आत्माओं में सर्वोच्च आत्मा है। परमात्मा हम सर्वा आत्माओ के पिता (father)है, जो हमे सुख और शांति का अविनाशी वार्सा देते है l आत्माओं की तरह, भगवान प्रकाश का ही एक सूक्ष्म बिंदु है, लेकिन मानव आत्माओं के विपरीत, वो आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है, अर्थात चक्र मे नही आते और कर्मों के फल – सुख वा दुख की अनुभूति नही करते, अर्थात वो अकर्ता है, सत्य है। भगवान सभी मानव आत्माओं का सर्वोच्च पिता, माता, शिक्षक, सखा और सतगुरु है। हम सभी को केवल हमारे कठिन समय में ही याद है, यह हमारे भीतर ऐसा अंतर्निहित है। हम परमपिता को अपने दुख के समय मे ही याद करते है, यह हुमारे मन बुद्धि मे इतने तक बैठा हुआ है की वो ही हमारा शांति दाता है l
निराकार भगवान के प्रतिनिधियों
निराकार होने के नाते, भगवान को कई धर्मों में अंडाकार (अंडे के आकर) के पत्थर वा प्रकाश के रूप मे दर्शाया जाता है। हिंदू धर्म में, भगवान की शिवलिंगम या ज्योतिर्लिंगम नामक एक अंडाकार के पत्थर के रूप में पूजा की जाती है, जिसका अर्थ है शिव का प्रतीक या प्रकाश का प्रतीक। शिव अर्थात कल्याणकारी l इस्लाम मे एक अंडाकार आकार के काले पत्थर का सम्मान करते हैं जिसे सांग-ए-असवाद (पवित्र पत्थर) कहा जाता है, जिसे मक्का में ग्रैंड मस्जिद में काबा में रखा गया है। जीसस क्राइस्ट (ईसाई धर्म के धरमपिता) ने कहा है कि ‘GOD is light’ (ईश्वर प्रकाश स्वरूप है)। महात्मा बुद्ध ने गहन ध्यान शुरू किया और जन्म और मृत्यु के चक्र से परे भगवान का आध्यात्मिक निराकार अविनाशी अस्तित्व पाया। गुरु नानक ने परमात्मा की महिमा गयी है – ”वो सत्त च्चित, आनंद स्वरूप, अकाल मूरत है।”
लगभग सभी धर्मों के अनुयायी परमात्मा को ‘निराकार’ (Incorpeal) मानते है | परन्तु इस शब्द से वे यह अर्थ लेते है कि परमात्मा का कोई भी आकार (रूप) नहीं है | अब परमपिता परमात्मा शिव कहते है कि ऐसा मानना भूल है | वास्तव में ‘निराकार’ का अर्थ है कि परमपिता ‘साकार’ नहीं है, अर्थात न तो उनका मनुष्यों जैसा स्थूल-शारीरिक आकार है और न देवताओं-जैसा सूक्ष्म शारीरिक आकार है बल्कि उनका रूप अशरीरी है और ज्योति-बिन्दु के समान है | ‘बिन्दु’ को तो ‘निराकार’ ही कहेंगे | अत: यह एक आश्चर्य जनक बात है कि परमपिता परमात्मा है तो सूक्ष्मतिसूक्ष्म, एक ज्योति-कण है परन्तु आज लोग प्राय: कहते है कि वह कण-कण में है | लेकिन परमात्मा तो सिर्फ़ अपने परमधाम मे व्याप अर्थात रहते है l
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परमपिता परमात्मा महिमा
परमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द ए सागर और प्रेम के सागर है | वह ही पतितों को पावन करने वाले, मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की राह दिखाने वाले (Guide), विकारों तथा काल के बन्धन से छुड़ाने वाले (Liberator) और सब प्राणियों पर रहम करने वाले (Merciful) है | मनुष्य मात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सद्गति का वरदान देने वाले भी एक-मात्र वही है |
भगवान हमारे सामने कब प्रकट होता है
अब यह समझा जाता है कि भगवान के साथ हमारा रिश्ता पिता और पुत्र (आत्मा और परमात्मा) का है, शिक्षक और छात्र, गुरु और चेले का , सबसे अच्छे दोस्त का है l लेकिन यह सभी रिश्तों का आनंद हम आत्माए कब अनुभव करती है? बुद्धि कहती है, हमने ज़रूर यह सभी सुख परमात्मा द्वारा कभी ना कभी प्राप्त किए होंगे।
कहा जाता है की ‘समय स्वयं को दोहराता हैl विश्व नाटक चक्र पाठ मे चर्चा के अनुसार, विश्व नाटक एक चक्र की तरहा दोहराता है। कलियुग के बाद फिरसे सतयुग आता है। अभी कलियुग का अंत और सतयुग की आदि का विशेष समय चल रहा है, जिसे संगम युग कहा जाता है। परमात्मा आकर प्रकृति और पुरुष (आत्मा) दोनो को पवित्र बनाते है – यह उनका Drama मे पार्ट है। इस समय भगवान को ‘नई दुनिया के निर्माता’ की भूमिका निभाने के लिए प्रकट होना है। जबकि परम-आत्मा निराकार है, विदेही है, उनको हमे ज्ञान देने लिए मुख की आवास्यकता है – वह मुख है प्रजापिता ब्रह्मा का l तो ब्रहमा द्वारा वो अपना रचना का पार्ट बजाते है। तो लगभग 100 वार्स मे परिवर्तन का कार्य संपन्न हो जाएगा – सभी आत्माओ को मुक्ति का वारसा मिलेगा और कुछ आत्माए जो सतयुगी आत्माए है अर्थात जिनका पार्ट है सतयुग मे, उनको श्रीमत द्वारा 21 जानम का सुख का वारसा अर्थात जीवन मूरकटि का वारसा मिलेगा वा मिल रहा है।
आपको गूड़ न्यूज़ देते है की शिव बाप का अवतरण (शिव जयंती) 1936 के आस पास ही हुआ था और यह उनका गुप्त पार्ट तभी से चल रहा है – ब्रह्मा द्वारा नयी दुनिया की स्थापना और फिर शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश। हर कोई यह देख सकता है कि सभी प्रमुख घटनाएं केवल पिछले 100 वर्षों में हुई हैं (विज्ञान, परमाणु ऊर्जा, विज्ञान की नयी शोधे, मानव प्रतिभा और प्रसिद्धि का उदय, आदि… ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान स्वयं यहाँ उपस्थित हैं जो अपने बच्चों की इच्छाओं को पूरा करते है।