*मुरली कविता दिनांक 14.12.2018*
याद रखो अपना सरनेम तुम हो ईश्वरीय संतान
देवताओं से ऊंची बनाओ अपनी चलन महान
बाप ने हमें अपने जैसा प्यार का सागर बनाया
इसीलिए हमारे जड़ चित्रों में प्यार नजर आया
ज्ञान योग से बाप समान खुद को मीठा बना लो
अपने मुख से सबके लिये ज्ञानरत्न ही निकालो
ऊंच से ऊंच परमपिता शिव परमात्मा निराकार
बच्चों को आकर पढ़ाते लेकर ब्रह्मा तन साकार
एक दूजे के गुणों को तुम अपने जीवन में लाना
कुछ भी हो किसी का तुम अवगुण नहीं उठाना
याद में बैठकर खुद में शांति की ताकत बढ़ाओ
शांतचित्त अवस्था से औरों को अशरीरी बनाओ
बहुत कम और रायॅल्टी से करनी है सबसे बात
तन-मन-धन से ट्रस्टी होकर देना बाप का साथ
आदि अनादि स्वरूप की स्मृति मन में जगाओ
बनकर स्वराज्य अधिकारी बंधनमुक्त हो जाओ
बंधनमुक्त स्वतन्त्र तुम खुद को अगर बनाओगे
पास विद ऑनर होकर प्रथम चरण में आओगे
सबके दु:ख को रूहानी सुख में बदलते जाओ
दुखहर्ता बनकर तुम सच्चे सेवाधारी कहलाओ
*ॐ शांति*